महाराणा प्रताप की सम्पूर्ण जीवनी हिन्दी मे
महाराणा प्रताप की सम्पूर्ण जीवनी हिन्दी मे(Maharana Pratap Complete biography in Hindi):- महाराणा प्रताप को राजपूत वीरता, शिष्टता और दृढ़ता की एक मिसाल माना जाता है।महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप के पिताजी का नाम उदयसिंह एवं माता राणी जैवन्ता बाई था जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी।
महाराणा का लालन पालन भीलो की देख रेख में हुआ था वे उन्हें प्यार से कीका कहते थे. महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ।उनके पिता उदय सिंह द्वितीय मेवाड़ के राजा थे जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी।
सन 1572 में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठते ही उन्हें अभूतपूर्व संकोटो का सामना करना पड़ा, मगर धैर्य और साहस के साथ उन्होंने हर विपत्ति का सामना किया।जब महाराणा प्रताप को अपने पिता के सिंहासन पर बैठाया गया, तो उनके भाई जगमाल सिंह, ने बदला लेने के लिए मुगल सेना में शामिल हो कर बगावत कर दिया।
अकबर ने सोच लिया था की जगमाल मेवाड़ को अपने कब्जे में करने के लिए काम आएगा इसलिए अकबर ने जगमाल को सिरोही की कुछ जागीर दे दी. लेकिन जगमाल 1583 ई. में दतानी के युद्ध में जगमाल की म्रत्यु हो गयी थी.
हल्दीघाटी युद्ध की योजना:
हल्दीघाटी के युद्ध की योजना अकबर ने अजमेर के किले में बनाई थी,महाराणा प्रताप का एक भयंकर युद्ध अकबर की सेना के साथ हुआ था, लेकिन अकबर ने उस युद्ध में भाग नही लिया था
यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है।
हल्दीघाटी के उचे होने के कारण मानसिंह अपनी सेना को दूसरी तरफ नही भेज पा रहा था लेकिन हल्दीघाटी के इच में एक सकडा रास्ता था जिसमे से एक बार में कुछ ही सेनिक निकल सकते थे, वहा से मानसिंह ने अपनी सेना को भेजना शुरु किया.
प्रताप ने इसी बात का फायदा उठा कर जैसे ही मानसिंह की सेना के सिपाहियों ने हल्दीघाटी में प्रवेश करना चालू किया उन्होंने उन पर तीर भालो से वार कर दिया देखते ही देखते मुग़ल सेना के सेनिको की बहुत सारी लाशे बिछ गयी यह देख मानसिंह ने अपनी सेना को वापस हटने को बोला. और हल्दीघाटी में प्रवेश करने का दूसरा रास्ता खोजने लगे.
यह दूसरा रास्ता शक्ति सिंह को पता था शक्तिसिंह ने मुग़ल सेना को साथ लिया और बनास नदी के किनारे होते हुए एक बड़े मैदान में पहुच गये जहा यह युद्ध लड़ा गया, इस युद्ध को लड़ने के बाद उस मैदान का नाम “रक्ततलाई” रख दिया गया था, क्योंकी वहा पर सेनिको का इतना खून बहा था की पूरा मैदान खून से भर गया था.इस युद्ध में महाराणा प्रताप बुरी तरह से घायल हो गये थे, यह देखते ही उनके मित्र “झाला वीदा” ने उनकी जगह ले
इस युद्ध में झाला वीदा वीरगति को प्राप्त हो गये थे, वहीं ग्वालियर नरेश ‘राजा रामशाह तोमर’ भी अपने तीन पुत्रों ‘कुँवर शालीवाहन’, ‘कुँवर भवानी सिंह ‘कुँवर प्रताप सिंह’ और पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैंकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गया.
कोल्यारी गाँव पहुचने से पहले उनके पीछे अकबर की सेना के कुछ सिपाही उनका पीछा कर रहे थे, प्रताप इस हालत में नही थे की वे उन सिपाहियों से लड़ पाए.
इसी बीच एक 27 फिट की खाई आ गयी जिसको पार करना किसी भी घोड़े के बस में नही था लेकिन प्रताप का घोडा इतना सवेंदनशील था की उसने प्रताप की हालत को भाप लिया और हवा की रफ़्तार से छलांग लगा दी और खाई के दुरी तरफ पहुच गया. लेकिन युद्ध में चेतक भी बहुत बुरी तरह घायल हो गया था
इसलिए खाई से कूदने के कुछ दूर चलने पर ही उसकी मृत्यु हो गयी , उस समय पहली बार महाराणा प्रताप रोए थे. क्योंकि चेतक ही था जिसकी वजह से प्रताप ने कई युद्ध जीते थे और आज उनकी जान भी बचाई थी. चेतक को आज भी पुरे भारत में एक वीर योधा में रूप में देखा जाता है
निजी जीवन:-
उन्होंने अपने जीवन काल में कुल 11 शादियाँ की थी। महाराणा प्रताप के सभी 11 पत्नियों के नाम:
महारानी अज्बदे पुनवर, अमर्बाई राठौर, रत्नावातिबाई परमार, जसोबाई चौहान, फूल बाई राठौर, शाहमतिबाई हाडा, चम्पाबाई झाती, खीचर आशा बाई, अलाम्देबाई चौहान, लखाबाई, सोलान्खिनिपुर बाई।
इन सभी रानियों से महाराणा प्रताप के कुल 17 पुत्र हुए जिनके नाम थे – अमर सिंह, भगवन दास, शेख सिंह, कुंवर दुर्जन सिंह, कुंवर राम सिंह, कुंवर रैभाना सिंह, चंदा सिंह, कुंवर हाथी सिंह, कुंवर नाथा सिंह, कुंवर कचरा सिंह, कुंवर कल्यान दास, सहस मॉल, कुंवर जसवंत सिंह, कुंवर पूरन मॉल, कुंवर गोपाल, कुंवर सनवाल दास सिंह, कुंवर माल सिंह।
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक:-
महाराणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है| चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी| हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है|महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक को आज भी लोग एक योद्धा के रूप में सम्मान पूर्वक देखते है.
महाराणा प्रताप की मृत्यु:-
अपने अंतिम समय मे महाराणा प्रताप अपने राज्य के सुविधाओं में जुट गए परन्तु 11 वर्ष के पश्चात 29 जनवरी 1597, 56 वर्ष की उम्र में अपनी नई राजधानी चावंड, राजस्थान मे उनकी मृत्यु हो गई।ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई थी। लेकिन जानकारों का कहना है कि वो शिकार करते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गये थे और जिससे उनकी मौत हो गई।
महाराणा प्रताप की जयंती हर वर्ष पुरे भारत में मनाई जाती है. इस दिन लोग खूब ढोल नगाड़े बजाते है. इस जयंती के पर्व पर राजस्थान में रंगारंग कार्यक्रम होते है.
एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए